व्यापमं कांड (Vypam Scam) की जांच में एक दिलचस्प तथ्य सामने आया है। दरअसल आरोपी हैंडराइ‌टिंग को बचने का जरिया बना रहे हैं। पीएमटी फर्जीवाड़े में पुराने केसों की जांच की गई। बचाव पक्ष दलील दे रहा है कि 10 साल पहले किए गए हस्ताक्षर व नमूना हस्ताक्षर में समय का अंतर अधिक है। इतना अधिक समय बीत जाने के बाद स्वाभाविक रूप से हस्ताक्षर में अंतर आ जाएगा।

2015 में सौंपी गई थी जांच

दरअसल जुलाई 2015 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर व्यापमं कांड की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। सीबीआइ ने सभी केसों की जांच खत्म कर न्यायालय में चालान पेश कर दिए हैं। अब विचारण पूरे होने के बाद न्यायालय ने फैसले सुनाए हैं, लेकिन पीएमटी कांड में सीबीआइ जिन परिक्षार्थियों के सॉल्वर को गिरफ्तार नहीं कर सकी है, उन केसों के परीक्षार्थी, मीडियेटर, दलाल दोषमुक्त हुए हैं। पीएमटी कांड में अब तक चार प्रकरण में आरोपियों को न्यायालय ने दोषमुक्त करार दिया है। इसमें सॉल्वर के नहीं मिलने से पूरी कहानी संदिग्ध हो गई, इसका फायदा आरोपियों को मिला है।

अभियोजन ने भी लगाए आरोप

अभियोजन ने जो आरोप लगाए हैं, उन्हें साबित करने की जिमेदारी भी अभियोजन की होती है। सॉल्वर से परीक्षा पास करना बताया गया। ऐसे केस में सॉल्वर का खुलासा जरूरी है। सॉल्वर नहीं मिला तो आरोपी दोषमुक्त होंगे।- जगदीश शर्मा, पूर्व लोक अग्नियोजक

नहीं टिक पाए सीबीआई के आरोप

व्यापमं के केसों के लिए बनाए गए विशेष न्यायालय ने 23 मई, 2025 को पीएमटी कांड के आरोपी राहुल शर्मा के मामले में फैसला सुनाया था। सीबीआइ ने जांच के बाद जो खुलासा किया था और आरोप लगाए थे, वह बचाव पक्ष के सामने नहीं टिक पाए। सॉल्वर बैठाकर परीक्षा पास करना बताया गया, लेकिन सॉल्वर को नहीं पकड़ा गया। पत्रिका ने पीएमटी कांड के केसों की पड़ताल की तो सामने आया कि 2009 के पहले के फर्जीवाड़े में दस्तावेज नहीं हैं। इस कारण सॉल्वर नहीं मिल पाए। सिर्फ बयान पर केस चल रहे हैं, दस्तावेज साक्ष्य नहीं है। ग्वालियर में 46 केसों में फैसला हो चुका है, 23 में फैसला होना शेष है।